Monday, October 11, 2010

अयोध्या में राम भी रहीम भी




प्रदीप उपाध्याय

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 सितम्बर कोराम और रहीमके सिद्धांत को पुर्नस्थापित करते हुए विवादित स्थल को तीन भागों में बांटने के निर्देश दिए हैं। विवादित स्थल के मालिकाना हक को लेकर पिछले 60 वर्षों से चल रहे इस विवाद पर स्वतंत्र भारत का यह पहला न्यायिक निर्णय है। इस निर्णय के अनुसार विवादित भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के पक्षकारों के बीच बराबर बांटा जाएगा।

कोर्ट
के फैसले का दोनों समुदायों ने स्वागत किया है। हालांकि उन्हें कुछ शिकायतें भी हैं, जिसके निवारण के लिए वे सुप्रीम कोर्ट में जाने की तैयारी कर रहे हैं। इस फैसले ने हिंदू-मुस्लिम एकता की मिशाल कायम करते हुए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अरबी चैनलों के हाथों से भारत की आलोचना करने के एक सुनहरा मौका छिन लिया है।

पाकिस्तानी मीडिया तो शायद इस फैसले के बाद भारत में दंगों की उम्मीद लगाए बैठी थी, लेकिन हिन्दुस्तान की जनता ने उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। हमारे देश के युवाओं ने दिखा दिया कि हमारा देश एकता के सूत्र में पिरोई हुई वो माला है जिसे दुनिया की कोई ताकत नहीं तोड़ सकती है

अगर मैं अपने शब्दों का इस्तेमाल करूं तो एक बात ही मुंह से निकलती है किइस माला को सदा पिरोए रखना, हिंदू-मुस्लिम रूपी इन मोतियों को संजोए रखना, तोड़ पाए कोई इसे, ये याद रखना, प्यार भरे इस दामन को हमेशा थामे रखना।

ये पंक्तियां किसी शायर या कवि की कल्पना नहीं है, ये मेरी मेरे देश के युवाओं से एक उम्मीद है। इन पक्तिंयों से मैंने अपने युवा वर्ग को ये समझाने की कोशिश की है कि तुम अलग-अलग धर्म या सम्प्रदाय को भले ही मानते हो लेकिन ये कभी मत भूलना की तुम एक मां की संतान हो।

मेरा मानना है कि दो भाईयों में थोड़ी देर के लिए मनमुटाव हो सकता है, लेकिन उनमें कितना ही मनमुटाव क्यों हो पर दोनों में से कोई भी अपने भाई को लहुलूहान नहीं देख सकता।

इसका ताजा उदाहरण गुरूवार को देखने को मिला जब मुसलमान और हिंदू कोर्ट के निर्णय जानने के लिए सुबह से ही अपने घरों में टेलीविजन के सामने बैठे थे और जब कोर्ट ने निर्णय सुनाया तो दोनों ने खुले दिल से उसे स्वीकार किया।

इस फैसले ने दोनों समुदायों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है। दोनों ही समुदाय शांति और सौहार्दपूर्ण माहौल कायम रखने के पक्षकार हैं। वे नहीं चाहते की ईश्वर के नाम पर राजनीतिक लोग अपनी रोटियां सेंकने के लिए किसी हिंदू या मुसलमान की लाशों का सौदा करें। आज वे समझ चुके हैं कि राम या रहीम दोनों एक ही परमशक्ति परमात्मा के दो अलग-अलग नाम हैं।

आज का युवा वर्ग बौद्धिक स्तर पर धर्म के बजाए आर्थिक विकास के बारे में ज्यादा सोचता है। वह यह नहीं चाहेगा कि ईश्वर का घर कहे जाने वाले मंदिर या मस्जिद की नीव में बेगुनाहों की लाशें भरी जाए।

हमें ईश्वर को याद करने के लिए किसी मंदिर या मस्जिद की जरूरत नहीं है। यदि पुराण और ग्रंथों को देखे तो इस बात का कई बार जिक्र किया गया है कि हर जीव और चराचर विश्व के कण-कण में ईश्वर का वास है। तो क्या हर कण में बसने वाले उस ईश्वर को हम मंदिर और मस्जिद की सीमा में बांध सकते हैं?

हमें केवल अपने अंदर ईश्वर के उस दिव्य रूप को ढूंढ़ना है, जो हमारी आखों की पकड़ से दूर है और जिसे केवल आध्यात्म के जरिए ही देखा या पाया जा सकता है। यही कारण है कि हर साल बड़ी संख्या में विदेशी लोग आध्यात्म की खोज के लिए भारत में आते है।

आज मैं देश की युवा वर्ग की उस सोच को बदलाव देख रहा हूं, जिसमें वहसुक्ष्म से विस्तृत की ओरबढ़ता था। लेकिन अब उसका सोचने का नजरिया बदल गया है, अब वहविस्तृत से सुक्ष्म की ओरबढ़ रहा है।
मैंने ये शब्द पहली बार सातवी क्लास में अपने अध्यापक से सुने थे। उन्होंने मेरी क्लास के 58 विद्यार्थियों से उनका परिचय पूछा, तो हर किसी ने अपने नाम के पीछे जाति सूचक उपनाम और अपने राज्य का नाम जोड़ कर बताया। इस पर मेरे अध्यापक ने कहा था कि यह देश का दुर्भाग्य है कि आज का युवा भी सुक्ष्म से विस्तृत की ओर बढ़ रहा है। उनकी ये बातें तो उस समय मेरी समझ में नहीं आयी, लेकिन आज मैं इन बातों के अर्थ को अच्छी तरह समझ गया हूं।

मेरी इन पक्तिंयों को युवा वर्ग को समझना होगा।सुक्ष्म से विस्तृत की ओरबढ़ना इसका तात्पर्य उस परिचय से है जिसमें हम कहीं भी अपना परिचय देते हुए अपने नाम के साथ जाति और राज्य का नाम जोड़ देते हैं। क्योंकि हम हर काम में पहले अपना, फिर अपने परिवार का, जाति, क्षेत्र, राज्य का फायदा देखने के बाद देश के फायदे के बारे में सोचते हैं।

जबकिविस्तृत से सुक्ष्म की ओरजाने का अर्थ है पहले देश फिर राज्य, क्षेत्र, जाति और उसके बाद परिवार स्वयं। यह दृष्टिकोण जिस देश के युवाओं में होता है वह राष्ट्र बुलंदी की हर ऊचाई को प्राप्त कर लेता है।

खैर इन बातों को छोडों हम तो बात कर रहे थे- अयोध्या मुद्दे की।

लम्बे समये से दोनों समुदायों के बीच टकराव की वजह बने इस विवाद पर सुनाई कर रहे तीन जजों ने कुछ बिंदुओं को छोड़ सर्वसम्मति से फैसला किया है। अब आप पूछेंगे कि मीडिया के मुताबिक तो फैसला 2-1 बहुमत के आधार पर आया है, फिर मैं इसे सर्वसम्मति से लिया गया फैसला कैसे कह सकता हूं।

इसका एक कारण कुछ मुद्दों को छोड़ कर तीनों जज का एक मत होना है। सुनवाई के दौरान उठाए गए अहम प्रश्न और उन पर जजों की राय-


1. क्या यहां मस्जिद थी?
जस्टिस एसयू खान- हां।
जस्टिस सुधीर अग्रवाल- हां, मुसलमानों ने हमेशा इसे मस्जिद माना है।
जस्टिस धर्मवीर शर्मा- नहीं, क्योंकि ये इस्लाम की परंपरा के खिलाफ बनाई गई थी।

निर्णय- हां (बहुमत के आधार पर)।

2. क्या विवादित भूमि श्रीराम की जन्मभूमि है?
जस्टिस एसयू खान- मस्जिद बनने के बाद से हिन्दुओं ने इसे राम जन्मभूमि माना है।
जस्टिस सुधीर अग्रवाल- हां, हिन्दुओं की यही मान्यता है।
जस्टिस धर्मवीर शर्मा- हां।

निर्णय- हां (सर्वसम्मत)।

3. क्या मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को गिराया गया था?
जस्टिस एसयू खान- मस्जिद बनाने के लिए कोई हिंदू मंदिर नहीं ढहाया गया। उस स्थल पर काफी पहले से मंदिर के अवशेष पड़े थे। उनका इस्तेमाल मस्जिद बनाने में भी किया गया था।
जस्टिस सुधीर अग्रवाल- हां, एक गैर-इस्लामी ढांचे (हिन्दू मंदिर) को गिराया गया था।
जस्टिस धर्मवीर शर्मा- आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानी (एएसआई) ने साबित किया है कि एक बड़ा हिन्दू धार्मिक ढांचा गिराया गया था।

निर्णय- हां (सर्वसम्मत)।

4. क्या मूर्तियां 22−23 दिसंबर, 1949 की रात रखीं गई थीं।
जस्टिस एसयू खान− हां।
जस्टिस सुधीर अग्रवाल− हां।
जस्टिस डीवी शर्मा− हां।

निर्णय- हां (सर्वसम्मत)।

5. क्या ये जगह हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों से जुड़ी है।
जस्टिस एसयू खान- हां।
जस्टिस सुधीर अग्रवाल- हां।
जस्टिस डीवी शर्मा- नहीं, सिर्फ हिन्दुओं से।

निर्णय- हां (बहुमत के आधार पर)।

6. क्या राम की मूर्ति मुख्य गुंबद के नीचे रहनी चाहिए?
जस्टिस एसयू खान− हां।
जस्टिस सुधीर अग्रवाल− हां।
जस्टिस डीवी शर्मा− हां।

निर्णय- हां (सर्वसम्मत)।


7. भूमि के बंटवारे का आधार?
जस्टिस एसयू खान- तीनों को एक तिहाई हिस्सा मिले। मुख्य गुंबद हिन्दुओं को, सीता की रसोई और राम का चबूतरा निर्मोही अखाड़ा को।
सुधीर अग्रवाल- तीनों को एक-तिहाई हिस्सा मिले। मुख्य गुंबद हिन्दुओं को, सीता की रसोई और राम का चबूतरा निर्मोही अखाड़ा को।
जस्टिस डीवी शर्मा- मंदिर के निर्माण में मुसलमान हस्तक्षेप न करें।

निर्णय- बहुमत के आधार पर तीनों को एक-तिहाई हिस्सा मिले।(मुख्य गुंबद हिन्दुओं को, सीता की रसोई और राम का चबूतरा निर्मोही अखाड़ा को।)

8. क्या यह मस्जिद है तो इसे बाबर ने बनवाया या मीर बाकी ने?
जस्टिस सुधीर अग्रवाल- वादी यह साबित करने में नाकामयाब रहे कि विवादित ढांचा बाबर या मीर बाकी ने बनवाया।
जस्टिस धरमवीर शर्मा- इसे बाबर ने बनाया था।
जस्टिस एस.यू खान- यह तय नहीं है कि मस्जिद किसने बनवाई।

निर्णय- नहीं (बहुमत के आधार पर)।

9. क्या मुकदमा समय रहते दायर किया गया?
जस्टिस सुधीर अग्रवाल- नहीं।
जस्टिस धरमवीर शर्मा- नहीं।
जस्टिस एस.यू खान- नहीं।

निर्णय- नहीं (सर्वसम्मत)।

10. क्या रामजन्मभूमि पर हिंदू आदिकाल से पूजा-अर्चना करते रहे हैं और तीर्थयात्रा के लिए वहां आते रहे हैं?
जस्टिस सुधीर अग्रवाल- हां।
जस्टिस धरमवीर शर्मा- हां।
जस्टिस एस.यू खान- हां।

निर्णय- हां (सर्वसम्मत)।


फैसलें
1. जस्टिस सुधीर अग्रवाल- विवादास्पद स्थान के अंतर्गत केंद्रीय गुंबद के दायरे में आना वाला क्षेत्र भगवान राम का जन्म स्थान है, जैसा की हिंदू धर्मावलंबी सोचते हैं। विवादास्पद स्थान को हमेशा मस्जिद की तरह माना गया और वहां मुस्लिमों ने नमाज पढ़ी। लेकिन यह साबित नहीं हुआ कि यह बाबर के समय 1528 में बनाई गई थी।


2. जस्टिस एस.यू. खान- मस्जिद बनाने के लिए किसी मंदिर को तोड़ा नहीं गया है। लेकिन मंदिर के अवशेष पर मस्जिद का निर्माण हुआ था और मस्जिद के निर्माण में भी मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल हुआ था। हालांकि, मस्जिद का निर्माण बहुत बाद में हुआ। मस्जिद बनने से पहले लंबे समय तक हिंदू विवादित जमीन के हिस्से को भगवान राम का जन्मस्थान मानते रहे हैं।


3. जस्टिस धर्मवीर शर्मा- पूरा विवादित स्थल भगवान राम का जन्म स्थान है। मुगल शासक बाबर द्वारा बनवाई गई विवादित इमारत का ढांचा इस्लामी कानून के खिलाफ थी और इस्लामी मूल्यों के अनुरूप नहीं थी।

इससे पहले प्रशासन और दोनों समुदाय फैसले के बाद 1992 में हुई हिंसा को दोहराए जाने को लेकर आशंकित थे। इसकि वजह से देश प्रधानमंत्री, मीडिया, राजनितिज्ञ और धार्मिक नेताओं ने बिना किसी हिंसा के ही शांति की अपील करनी शुरू कर दी।

यही वजह है कि कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट सुन्नी वक्फ बोर्ड और हिन्दू महासभा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय किया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और रामजन्म भूमि न्यास ने हाई कोर्ट द्वारा एक-तिहाई जमीन के बंटवारे के फॉर्मूले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। हालांकि बेंच ने तीन महीने तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है ताकि असंतुष्ट पक्ष के पास पर्याप्त समय हो कि वह सुप्रीम कोर्ट में जा सके।

प्रतिक्रियाएं

1. वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा, "हमें फैसला मंजूर नहीं है और फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। हमारे पास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के उचित कारण मौजूद हैं।" उन्होंने कहा कि अदालत द्वारा तीन महीने तक पूर्व स्थिति बनाए रखने के निर्देश की वजह से हमारे पास पर्याप्त समय है इसलिए हमें सुप्रीम कोर्ट जाने की जल्दबाजी नहीं है। उन्होंने बताया कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की जल्द होने वाली बैठक के बाद वह सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर करेंगे।

2. लखनऊ की मुख्य ईदगाह के नायब इमाम और शहर के मशहूर इस्लामी सेमिनरी के प्रमुख मौलाना खालिद रशीद ने फैसले को आंशिक रूप निराशाजनक बताया।

3. शिया संप्रदाय के मौलाना कल्बे जवाद का भी कहना है कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि फैसले से किसी को तनाव में आने की जरूरत नहीं है, सभी लोग शांति बनाए रखें।

4. अखिल भारतीय हिंदु महासभा ने भी सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय लिया है। उसका कहना है कि रामजन्मभूमि को तीन हिस्सों में नहीं बांटा जाना चाहिए। अयोध्या फैसले को संवेदनशील माना जा रहा है और इसीलिए पूरे देश भर में सुरक्षा का जबर्दस्त इंतजाम किए गए। देश में कही भी इस फैसले पर कोई जश्न या मातम नहीं मनाया जाएगा।

5. विश् हिंदू परिषद ने पहले ही यह कहा है कि जो दो अन् विवादित स्थलों (काशी और मथुरा) का स्वामित् भी उन्हें सौंप दिया जाए।

6. वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर प्रसाद के मुताबिक तीन सदस्यीय पीठ के दो सदस्य, न्यायमूर्ति एस. यू. खान और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा है कि भूमि को तीन हिस्सों में बांट दिया जाना चाहिए। उनके मुताबिक विवादित स्थल पर तीन महीनों तक यथास्थिति बहाल रखी जाएगी।

7. प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने फैसले के बाद लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की। उन्होंने कहा कि लोगों को भारतीय संस्कृति की सर्वोच्च परंपरा के अनुसार सभी धर्मों एवं धार्मिक आस्थाओं के लिए आदर प्रदर्शित करना चाहिए।

8. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा। उन्होंने कहा, इस फैसले को विजय और पराजय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह सभी के लिए आवश्यक है कि पिछले कुछ वर्षों में जो कुछ कटुता और विषमता उत्पन्न हुई उसे भुलाकर सबको मिल-जुलकर स्नेह भाव से राम मंदिर के निर्माण में जुट जाना चाहिए। राम राष्ट्रीय आस्था और राष्ट्रीय पहचान है और पिछली बातों को भुलाकर राष्ट्रीय एकता को दर्शाने का यह अवसर है।

9. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि न्यायालय के फैसले से हिंदुओं के इस अधिकार की पुष्टि हुई है कि गर्भगृह पर एक भव्य राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए। यह फैसला भगवान राम के जन्म स्थान पर भव्य राम मंदिर के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। उन्होंने कहा कि भाजपा मानती है कि इस फैसले से देश में राष्ट्रीय एकता के एक नए अध्याय और अंतर-सामुदायिक संबंधों के नए युग की शुरूआत होगी। भाजपा कृतज्ञ है कि देश ने अदालत के इस फैसले को परिपक्वता से स्वीकार किया है।


10. कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा," देश के सभी लोगों को न्यायपालिका में भरोसा रखना चाहिए। आज भी हमारी फिर यही अपील है कि सभी इस फैसले को स्वीकार करें।" द्विवेदी ने कहा, "इस निर्णय के आने के बाद किसी को भी इसकी अनुचित व्याख्या, अफवाहें और दुष्प्रचार नहीं करना चाहिए। हम देश के सभी नागरिकों से संयम बरतने और शांति बनाए रखने की अपील करते हैं। उम्मीद है कि देश में अमन का माहौल बरकरार रहेगा।"


11. उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने अयोध्या मसले पर आए फैसले के बाद कहा कि क्रियान्वयन की सारी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। अदालत के फैसले के मद्देनजर उन्होंने प्रदेश की जनता से साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए रखने की भी अपील की। मायावती ने कहा, "अदालत द्वारा जो फैसला सुनाया गया है उसके क्रियान्वयन के लिए केंद्र सरकार बाध्य होगी।" उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि विवादित स्थल और उसके आसपास की 67 एकड़ जमीन केंद्र सरकार के अधिग्रहण में है। उसकी सुरक्षा से लेकर अन्य संबंधित जिम्मेदारी भी केंद्र की है।

उन्होंने कहा, "राज्य सरकार ने फैसला किया है कि इस फैसले पर क्रियान्वयन के संबंध में आज ही प्रधानमंत्री को एक पत्र प्रेषित किया जाएगा और उसमें कहा जाएगा कि केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करे और इस संबंध में यथोचित कार्रवाई करे।" मायावती ने कहा, "समय रहते यदि केंद्र सरकार ने उचित कदम नहीं उठाया और राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ती है, तो इसके लिए केंद्र सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार होगी।"

12. कैथोलिक बिशप कांफ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) ने फैसले को हिंदुओं मुसलमानों के लिए सुलह और सद्भभाव के पथ पर आगे बढ़ने का एक शुभ संकेत बताया।

13. सीबीसीआई के प्रवक्ता बाबू जोसेफ नेआईएएनएससे कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि दोनों समुदायों के बीच शांति एवं सौहार्द कायम होगा और इससे इस समस्या का कोई अंतिम समाधान निकालने का रास्ता साफ होगा।"

14. इस मुकदमे के प्रमुख पक्षकार हाशिम अंसारी ने उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि आगे क्या होगा यह वक्फ कमेटी तय करेगी।

15. उद्योग संगठन एसोचैम की अध्यक्ष स्वाति पीरामल ने कहा, 'उच्च न्यायालय के फैसले से सभी की जीत हुई है। कानूनी संभावनाएं खुली हैं, लेकिन हमें भरोसा है कि राष्ट्र विरोधी तत्व शांति और सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान नहीं पहुंचाएगा।

16. फिक्की के अध्यक्ष राजन भारती मित्तल ने कहा, 'बड़े स्तर पर हिंसा हुई तो आर्थिक वृद्घि, गरीबी उन्मूलन और वैश्वीकरण के प्रयास पिछड़ जाएंगे।

17. स्वतंत्र शेयर सलाहकार एस पी तुलस्यान ने कहा, 'नकारात्मक फैसले का डर खत्म हो गया है। सभी की भावनाएं काबू में रहीं।

18. के.आर. चोकसी शेयर्स ऐंड सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक देवेन चोकसी ने कहा, 'फैसला तटस्थ लगता है। इससे शेयर बाजारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

19. विहिप महामंत्री प्रवीण तोगडिया ने कहा कि वक्फ बोर्ड को एक तिहाई भूमि देने के फैसले पर पहले अध्ययन किया जाएगा और फिर निर्णय लिया जाएगा। श्रीराम जन्मभूमि न्यास ने भी सुप्रीम कोर्ट जाने की घोषणा की है।

20. न्यास के अध्यक्ष महन्त नृत्य गोपालदास ने कहा कि हाईकोर्ट ने जमीन का जो हिस्सा मुसलमानों को देने की बात कही है उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। वैसे इस हिस्से को बातचीत से हासिल करने की कोशिश भी की जाएगी।

यह
विवाद 1885 से चला रहा है, जब महंत रघुवर दास ने पहली बार अंग्रेजों से राम चबूतरा (कथित बाबरी मस्जिद से लगा हुआ इलाका) पर मंदिर की स्थापना की अनुमति मांगी थी। इसके बाद 1949 में कुछ लोगों ने केंद्रीय गुंबद के नीचे रातों-रात मूर्तियां स्थापित कर दीं और पूजा शुरू कर दी। पूजा जारी रही, लेकिन बाद में इसके मालिकाना हक को लेकर निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने लड़ाई शुरू कर दी। वक्फ बोर्ड का दावा था कि यहां वास्तव में मस्जिद और कब्रिस्तान है।

उत्तर
प्रदेश की तत्कालिक कल्याण सिंह सरकार ने 10 अक्टूबर 1991 को विवादित परिसर के इर्दगिर्द 2.77 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया। वहीं, बाबरी ढांचा ढहाए जाने के बाद केंद्र की पी.वी. नरसिंह राव सरकार ने संसद की सहमति से परिसर के आसपास की करीब 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया था।