प्रदीप उपाध्याय
देश के लिए सबसे बड़ा खतरा और राजनेताओं के लिए राजनीतिक रोटी सेंकने वाला सबसे बड़ा तवा है नक्सलवाद। नक्सलवाद जहां देश को खोखला करने में लगा है वहीं हमारे प्रतिनिधि अभी तक यह फैसला नहीं कर पाये हैं कि इस समस्या से कैसे निपटा जाए।
नक्सलियों पर राजनीति की रोटियां सेंकने वाले इसे गांधीवाद से सुलझाने का सुझाव तो देते हैं, लेकिन शायद वे उन वीर सपूतों के लहू की कीमत को नहीं जानते जो नक्सली हमलों में शहीद हुए हैं, और ना ही उन्हें शहीदों के परिजनों के दर्द या सिसकियों का एहसाह है। वे तो सिर्फ सुझाव या सलाह देना जानते हैं।
देश के राजनेता किसी बड़े नक्सली हमले के बाद शहीदों के शवों पर श्रद्धांजलि के नाम पर फूलों का बोझ बढ़ाने जाते हैं, और नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के लिए बड़ी-बड़ी कसमें खाते हैं। लेकिन जब नक्सलवाद के खिलाफ ठोस रणनीति या कार्रवाई करने का समय आता है तो हमारे नेता गांधीवादी राग अलापने लगते हैं।
पिछले पांच महीनों में 100 से ज्यादा जवान नक्सली हमलों में शहीद हुए हैं। इनमें सीआरपीएफ के जवानों की संख्या सर्वाधिक है।
नक्सल प्रभावित राज्यों में जवानों के शहीद होने का यह सिलसिला पश्चिम बंगाल के सिल्दा कैंप पर हमले से शुरू हुआ। इस हमले में 24 जवान शहीद हुए थे। चार अप्रैल को ओडिशा के कोरापुट जिले में नक्सलियों ने स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के 11 जवानों की हत्या कर दी।
इसके दो दिन बाद ही छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में बारूदी सुरंग विस्फोट में सीआरपीएफ के 75 जवान शहीद हो गए थे। छत्तीसगढ़ के ही बीजापुर जिले में नक्सलियों के आईईडी ब्लास्ट में सीआरपीएफ के आठ जवान शहीद हुए, जबकि सोमवार को नक्सलियों ने दंतेवाड़ा में लोगों से भरी बस को उड़ा दिया, जिसमें 12 एसपीओ समेत 36 लोगों की मौत हो गई।
तेजी से बढ़ते नक्सली हमलों और उन पर सरकार के ढुलमुल रवैये ने जवानों की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है, जिसके बावजूद जवानों के नक्सलियों के खिलाफ अभियानों और अपनी देशवासियों की सुरक्षा के जज्बें में कोई कमी नहीं दिख रही है।
सोमवार को दंतेवाड़ा में बस पर हुए नक्सली हमले के बाद बस में सवार एसपीओ के जवान नक्सलियों का मुकाबला नहीं करते तो हताहतों की संख्या और बढ़ सकती थी। राज्य पुलिस के आईजी आरके विज ने संवादाताओं को बताया कि आईईडी ब्लास्ट से बस हवा में उछलकर पलट गई थी। हमले के फौरन बाद एके-47 राइफलों से लैस नक्सलियों ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी थी। लेकिन हमले में बच गए कुछ एसपीओ जवानों ने हिम्मत नहीं हारी और उनका दिलेरी से सामना किया। इसी का नतीजा था कि नक्सली भाग खड़े हुए और घायलों को फौरन अस्पताल ले जाना संभव हो सका।