भारत एक लोकतांत्रिक और धर्म निरपेक्ष देश है। यहां पर सभी को अपने धर्म का मानने की पूरी आज़ादी है। आज़ादी के लिए लड़ाई और धर्म के नाम पर बंटवारे के बावजूद भारत ने खुद को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाया।
भारत की एक समृद्ध सांस्कृति और इतिहास रहा है। यहां अनेकों ऐसे महात्मा और बलिदानी हुए हैं, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर अपने धर्म व मानवता की रक्षा की। ऐसे ही एक महा बलिदानी हैं गुरु तेग बहादुर जी।
उस समय हिन्दुस्तान पर मुगलों का राज था। इस्लाम के नाम पर कट्टपंथी अपने चरम पर थे। मुगल शासक औरंगज़ेब के संरक्षण में दिल्ली समेत देशभर में कट्टरपंथी अपनी मनमानी कर रहे थे। वो किसी भी कीमत पर इस्लाम का प्रचार व प्रसार करना चाहता था। इसके लिए उन्होंने लोभ व भय दिखाकर न जाने कितने ही लोगों को इस्लाम कबूल कराया और जिन्होंने इस्लाम कबूल नहीं किया उन्हें मौत के घाट उतरवा दिया।
ऐसे में धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वालों में सिख गुरुओं का नाम सबसे आगे लिया जाता है। औरंगज़ेब द्वारा सिखों के नौवें गुरु श्री तेग बहादुर जी को इस्लाम कबूल करने की यातनाएं दी गईं। इसके बावजूद वो धर्म के मार्ग पर डटे रहे और धर्म रक्षा के लिए उन्होंने मुस्कान के साथ अपने प्राणों की आहुति दे दी।
गुरु तेग बहादुर का जीवन
गुरु तेग बहादुर जी सिखों के छटे गुरु श्री हरगोविन्द सिंह के पांचवें पुत्र थे। उनका जन्म पंजाब के अमृतसर में हुआ था। सिखों के आठवें गुरु ‘हरिकृष्ण राय’ जी की अकाल मृत्यु के बाद सर्वसम्मति से गुरु तेगबहादुर को 9वां गुरु बनाया गया था। गुरु तेग बहादुर का बचपन का नाम त्यागमल था। 14 वर्ष की छोटी सी आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने अदम्य साहस व शौर्य का परिचय दिया था, जिससे प्रभावित होकर गुरु गोविंद जी ने उनका नाम त्यागमल से बदलकर तेग बहादुर रख दिया, जिसका अर्थ होता है तलवार के धनी।
धैर्य, वैराग्य और त्याग के प्रतीक गुरु तेग बहादुर जी ने लगातार 20 वर्ष तक ‘बाबा बकाला’ नामक स्थान पर एकांत में साधना की। उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक विकास क्षेत्र में अनेकों कार्य किये। गुरु तेग बहादुर जी ने रूढ़ियों व अंधविश्वासों की आलोचनाएं की। उन्होंने लोक सेवा के लिए कई कुएं और धर्मशालाओं का निर्माण कराया।
गुरु तेग बहादुर से जुड़े किस्से
औरंगजेब अपने दरबार में हर रोज श्रीमद भगवत गीता के श्लोक और अर्थ सुनता था। इसके लिए उसने दरबार में एक विद्वान पंडित की नियुक्ति कर रखी थी। पंडित रोज़ भगवत गीता के श्लोक पढ़ता और उसका अर्थ समझाता, पर वह पंडित भगवत गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था। एक दिन पंडित बीमार हो गया। ऐसे में पंडित ने अपने बेटे को औरंगजेब के दरबार भेजा, लेकिन वह बेटे को यह बताना भूल गया कि औरंगज़ेब को किन श्लोकों का अर्थ बताना है और किन का नहीं।
पंडित के बेटे ने जाकर औरंगजेब को पूरी भगवत गीता का अर्थ सुना दिया। श्रीमद भगवत गीता का अर्थ सुनकर औरंगजेब को यह ज्ञान हो गया कि प्रत्येक धर्म अपने आप में महान है। किन्तु औरंगजेब की हठधर्मिता थी कि उसे अपने धर्म के धर्म के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा सहन नहीं थी।
कट्टरपंथी औरंगजेब ने सबको इस्लाम धर्म कबूल करने के निर्देश देते हुए कहा कि “सबसे कह दो या तो इस्लाम धर्म कबूल करें या मौत को गले लगा लें।”
ऐसे में औरंगजेब के अत्याचारों से परेशान कश्मीर के हिन्दुओं ने गुरु तेगबहादुर से धर्म की रक्षा की गुहार लगाई।
कश्मीरी हिन्दुओं की व्यथा को देखते हुए गुरु तेग बहादुर जी ने कहा कि “आप जाकर औरंगजेब से कह दें कि यदि गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे और यदि आप गुरु तेग बहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे।“ औरंगजेब ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया।
इसके बाद गुरु तेगबहादुर स्वयं औरंगजेब के दरबार पहुंच गए। औरंगजेब ने उन्हें बहुत से लालच और प्रलोभन दिया। पर गुरु तेगबहादुर जी नहीं माने तो उन पर ज़ुल्म किए गये। उन्हें कैद कर लिया गया और दो शिष्यों को मारकर गुरु तेगबहादुर जी को ड़राने की कोशिश की गयी। पर वे नहीं माने।
गुरु तेग बहादुर से औरंगजेब से कहा कि ‘यदि तुम ज़बरदस्ती लोगों से इस्लाम धर्म ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए।’