Wednesday, August 11, 2010

विरोध या विद्रोह


प्रदीप उपाध्याय

आतंकवाद का मक्का कहा जाने वाला पाकिस्तान कश्मीर में हिंसा फैलाने के लिए आतंकवादियों को बड़ी मात्रा में सहायता उपलब्ध करा रहा है। वह चाहता है कि कश्मीर में एसे हालात पैदा किए जाए, जिससे इसे मुद्दा बनाकर संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाया जा सके।

घाटी में पिछले आठ सप्ताह से जारी पत्थरबाजी के इस खेल में पाकिस्तान अलगाववादियों के जरिए हिंसा को बढ़ाने के लिए धन की आपूर्ति कर रहा है। इस खेल में सुरक्षा बलों को निशाना बनाया जा रहा है और अब तक 1500 से ज्यादा जवान घायल हो चुके हैं।

हिंसा में मरने वालों की संख्या तो सरकार और मीडिया की सुर्खियां बनी रहती हैं। लेकिन हमारे देश की विचित्र विड़ंबना है कि न तो उन्हें जवानों के जख्म दिखाई देते और न ही उन परिवारों के आसू दिखाई देते हैं, जिनके सपूतों के दम पर वह सुरक्षित महसूस करते हैं।

पत्थरबाजी के इस खेल से घाटी में पैदा हुए तनाव पर संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून तो चिंता जता चुके हैं। लेकिन खुद को कश्मीरियों का हमदर्द बताने वाली हुर्रियत इस हिंसा की आग में लगातार घी डालती दिखाई दी है। जिससे उसके हमदर्दी के दावे की सच्चाई का अंदाजा लगाया जा सकता है।

वहीं, राज्य में बिगड़ते हालातों को नियंत्रण में करने के लिए मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला के द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक का बहिष्कार कर पीडीपी अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती ने हिंसा का नेतृत्व करने की कोशिश की। लेकिन वहां अपनी दाल गलती न देख अब वह प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से सर्वदलीय बैठक बुलाए जाने की बात कह रही हैं।

यह एक ऐसी रणनीति है जिसमें प्रदर्शनकारी खुद तो हथियारों से परहेज करते हुए पत्थरों से वार करते हैं और ऐसी स्थिति पैदा कर देते है, जिससे विवश होकर सुरक्षा बलों को मजबूरन हथियारों का प्रयोग करना पड़ता है। ताकि वे विश्व समूदाय के समक्ष भारत की छवि को क्रूर दिखाते हुए सहानुभूति हासिल कर सके।

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