Tuesday, August 17, 2010

बांग्लादेशी महिलाओं में बढ़ रही है आत्महत्या की प्रवृत्ति



प्रदीप उपाध्याय

ढ़ाका। बांग्लादेश में राजनीतिक स्तर पर भले ही संविधान को बदलकर देश में फैले भ्रष्टाचार और हिंसक घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए जद्दोजहद की जा रही हो, लेकिन देश में महिलाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोकने में प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा है। आत्महत्या के पीछे प्रमुख कारण उनके साथ हो रही छेड़छाड़ और दुर्व्यवहार बताया जा रहा है।

ताजा घटना देश के मुंशीगंज शहर की है। जहां एक 15 वर्षीय हसना रहमान सिंथिया ने तीन लड़कों द्वारा छेड़छाड़ किए जाने से दुखी होकर ख़ुदकुशी कर ली। इस तरह की घटनाओं के बाद सरकार द्वारा कोई सख्त कार्रवाई नहीं किए जाने की वजह से ऐसी घटनाओं में इजाफा हो रहा है।

मानवधिकार संगठन ऐनोशालीश केंद्र के मुताबिक़ देश के प्रमुख शहरों में महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ की घटनाएं होना आम बात है। संगठन के अनुसार इस साल अब तक देश भर में लगभग 20 लड़कियों और महिलाओं ने छेड़ख़ानी के कारण अपनी जान दे दी है।

हाल ही देश के फ़ेनी शहर में एक व्यक्ति की सिर्फ इसी बात पर हत्या कर दी गई थी, क्योंकि उसने तीन लड़कों के द्वारा अपनी बेटी के साथ छेड़छाड़ किए जाने का विरोध किया था। जबकि कई लड़कियां और महिलाएं इस अपमान और बेइज्ज़ती को बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं और इससे तंग आकर अपनी जान दे देती हैं।

उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष ढ़ाका उच्च न्यायालय ने शारीरिक हमला करने, अपशब्द कहने या मोबाइल फोन के ज़रिए गंदे संदेश भेजने पर पाबंदी लगा दी थी।

इस समस्या पर चिंता जताते हुए बांग्लादेश के शिक्षा मंत्री नूरुल इस्लाम नाहिद ने कहा कि सिर्फ़ अदालती आदेश इस समस्या का समाधान नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा- '' ये सच है कि केवल उच्च न्यायालय का आदेश या क़ानून इसको नहीं रोक सकता चूंकि हम लोग हर जगह पुलिस नहीं तैनात कर सकते और हर आदमी की मदद नहीं कर सकते। इसलिए न्यायालय के आदेश का पालन करने और अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए हम लोग एक सामाजिक आंदोलन शुरु कर रहे हैं ताकि स्कूल जाने वाली लड़कियों की हिफ़ाज़त की जा सके।''

उन्होंने कहा कि कई बार सामाजिक कलंक के डर से माता-पिता अपनी बच्ची के साथ हो रही छेड़छाड़ को छिपा लेते हैं।

हालांकि देश के कुछ प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता शिक्षा मंत्री की इस बात से सहमत नहीं है। वे कहते हैं कि मीडिया अब इस तरह की घटनाओं को उठाने लगा है और पीड़ित लड़कियां भी सामने आकर अपनी आपबीती सुनाने लगीं हैं लेकिन इसके बावजूद सरकार इस तरह की घटनाओं को रोक पाने में नाकाम दिखाई देती है।

उनका कहना है कि देश का मौजूदा क़ानून छेड़छाड़ की घटनाओं को रोकने में असमर्थ है। इस समस्या से निपटने के लिए सख़्त क़ानून की ज़रुरत है।

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