Thursday, August 26, 2010

हम भारत-चीन युद्घ संबंधी दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं कर सकते क्योंकि...


प्रदीप उपाध्याय

भारत सरकार सूचना के अधिकार को आम आदमी के हाथ में एक सशक्त हथियार तो बताती है, लेकिन उस हथियार की जद से खुद को बचाने के लिए वह राष्ट्र हितों की दुहाई देती नजर आती है।

वर्ष 1962 में भारत पर हुए चीनी आक्रमण से संबंधित सरकारी दस्तावेजों को सार्वजनिक करने के संबंध में सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए एक सवाल का जबाब देते हुए मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) वजाहत हबीबुल्ला कहते है कि सूचना के अधिकार या किसी अन्य कानून के तहत इन दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। क्योंकि इनके सार्वजनिक होने से दोनों देशों के बीच सीमा विवाद पर जारी वार्ता प्रभावित होगी।

हबीबुल्ला के मुताबिक इस वर्गीकृत रिपोर्ट के कुछ अंश राष्ट्रीय हित में नहीं हैं। इसमें भारतीय सेना के शीर्ष अफसरों की अक्षमता का भी जिक्र किया गया है। वे अमेरिका और ब्रिटेन का हवाला देते हुए किसी युद्घ के 20 साल बाद उससे जुड़े दस्तावेजों को वर्गीकृत श्रेणी से हटाने की नीति है, लेकिन भारत में राष्ट्रीय हितों को देखने के बाद ही कोई भी फैसला किया जा सकता है।

दरअसल, वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने 'सूचना के अधिकार 2005' के अंतर्गत भारत-चीन युद्घ के दौरान भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह और पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुई वार्ता की जानकारी मांगी थी, जिसे सरकार ने नामंजूर कर दिया था। लेकिन अपना दामन पाक साफ रखने के लिए सरकार ने एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन कर सारी जिम्मेदारी उसी पर छोड़ दी।

चालीस साल पहले हुए इस युद्ध में चीन ने भारत के साथ जो विश्वासघात किया था। उसके जख्म शायद ही कभी भर पाएंगे। इस युद्ध में चीन ने हमारे 90,000 वर्ग किलोमीटर भू-भाग पर कब्जा कर लिया है। इसके बावजूद भारत ने काफी हद तक चीन के साथ अपने रिश्तें की मरम्मत की है।

इस युद्ध ने वर्तमान भारत सरकार की गांधीवादी विचारधारा और हिंदी-चीनी भाई के नारों की धज्जियां उड़ा कर रखा दी थी। जिसकी वजह से इस युद्ध में जान-बूझ कर सैकड़ों सैनिकों के प्राणों की आहूति दी गई।

तत्कालिक सरकार का प्रतिनिधित्व देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कर रहे थे, जबकि कृष्ण मेनन रक्षा मंत्री और लेफ्टिनेंट जनरल बी एन कौल पूर्वी सीमा पर सेना के प्रभारी के पद पर कार्यरत थे।

हमारे देश के जवान कभी भी जान देने से पीछे नहीं हटते हैं, लेकिन यह हमारे देश की दुर्भाग्यपूर्ण विड़बना है कि हमारी सरकार अपने दाग-दार दामन को छिपाने के लिए अमर शहीदों की शहादत को गाली देने से भी परहेज नहीं करती।

2 comments:

मेरे विचार said...

sahi bol rahe ho dost bt kya kare gandhi or nehru ki vichardhara wala desh hai hamara...
kaash koi indra fir se janam le

Pradeep Upadhyay said...

सही कहा मेरे मित्र, देश को आज सच में इंदिरा और संजय की जरूरत है। लेकिन ये हमारा दुर्भाग्य है कि आज हम भाई-भतिजावाद के चक्कर में देश नाम की चीज को ही भूल गए है। लेकिन हम पत्रकार अपनी कलम से लोगों के बीच अपनी सोई ताकत को जगाने का काम कर सकते हैं और अगर एक बार हमारा देश जाग गया तो हम पर साधु यादव जैसे अपराधी प्रवृति के लोग राज नहीं कर सकेंगे।