Saturday, September 25, 2010

राष्ट्रमंड़ल खेल या देशद्रोह


प्रदीप उपाध्याय

सुरेश कलमाड़ी और उसके सहयोगियों ने राष्ट्रमंड़ल खेलों के आयोजन में भी धांधली कर यह दिखा दिया है कि उनके लिए देश की प्रतिष्ठा या सम्मान की क्या अहमियत है। दरअसल इसमें उनकी कोई गलती नहीं है कि वे तो बिचारे शहीदों के कफनों तक का सौदा करने में पीछे नहीं हटते हैं।

ऐसे में जब उन्हें खेल के आयोजन में पैसे का समुंद्र दिखाई दिया तो वे देश की इज्जत को बेचने के लिए भी राजी हो गए। ऐसे लोग अपने फायदे के लिए अपनी घर की स्त्रियों को भी बाजार में खड़ा करने से भी परहेज नहीं करते हैं।

इन लोगों में स्वाभिमान नाम की एक भावना जो शायद हमारे नेताओं को छोड़कर अधिकत्तर भारतीय में पाई जाती हैं का आभाव होता है। ये लोग अपने बैंक के खातों में पैसे भरते वक्त ये भुल जाते है कि ये पैसे उन्होंने किसी की लाश से उठाए कफन को बेच कर कमाए है या देश की इज्जत को। इनके लिए पैसों की महक और बिना कफन के सड़ती लाशों से उठती दुर्गंध में कोई अंतर नहीं है।

इन लोगों को जब अपनी रोटियां को सेकने के लिए ईधन नहीं मिला है तो ये इंसानों की लाशों को बतौर ईधन के इस्तेमाल करते है। शायद यही कारण है कि ये लोग लाशों का सौदा करने के लिए हमेशा मौके की तलाश में रहते हैं।

यदि मैं एक आम भारतीय की भाषा में बोलु तो राष्ट्रमंडल खेलों का मेला नहीं है, बल्कि ये तो भ्रष्टाचार का महाकुंभ है। जहां एक ओर तो हर रोज भ्रष्टाचार में नए खुलासे हो रहे है, तो वहीं दूसरी ओर खेलों के शुरू होने से पहले ही आयोजन स्थलों की छतें टूट कर गिर रही हैं।

खेलों के 11 दिन पहले मुख्य आयोजन स्थल पर फुटऑवर ब्रिज के गिरने की खबर ने विश्व भर की मीडिया का ध्यान अपनी ओर खिच लिया। इतना ध्यान तो शायद खेलों के आयोजन पर भी नहीं दिया गया होगा। इसके बाद स्टेडियम की छत ही गिरने लगी है। इससे खेलों के सफल आयोजन के दावों में कितना दम है का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

अब ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि हमारी मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित और कलमाड़ी जी इस पर अपनी कोई सफाई न दे। अगर उनकी भाषा का इस्तेमाल करू तो वे इसके लिए भी बारिश और पाकिस्तान ही दोषी है।

इसका ताजा उदाहरण पिछलों दिनों दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के पास विदेशी नागरिकों को निशाना बनाकर हुई गोलीबारी है। कहने को तो दिल्ली में सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त हैं और यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। लेकिन जब यहां गोली बारी हुई तो वहां तैनात हमारे दिल्ली पुलिस के जवान न तो उनको पकड़ पाए और न ही एंकाउंटर कर पाए। उन्हें तो गोली चलाने के लिए भी अपने अधिकारी से आज्ञा मांगनी पड़ती है।

पिछले दिनों आई एक खबर के मुताबिक सेंथेटिक घास लगाने के लिए भी भ्रष्टाचार का सहारा लिया गया है। यहीं नहीं एक खबरों पर भरोसा किया जाए तो शीला दीक्षित ने मध्य प्रदेश में एक पांच सितारा होटल भी बनवाया है। लेकिन हमारा फिलहाल उनके होटल से कुछ लेना देना नहीं हैं, इसलिए हम इस मुद्दे को यहीं छोड़ देते है।

हम बात कर रहे है राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों और उनमें हुई अनियमितताओं व भ्रष्टाचार के नित नए खुलासों की। इसकी नैतिक और राजनीतिक जवाबदेही शीला दीक्षित और डॉ. मनमोहन सिंह की है। हमारे ये दोनों नेता अपनी सफाई में जांच का आश्वासन और कार्रवाई की बात करते हुए दिखाई देते हैं।

तो इधर कॉमनवेल्थ गेम में भ्रष्टाचार की गंगा के भागीरथ बने माननीय कलमाड़ी जी पर कालिख और दबाब को कम करने के लिए आयोजन समिति के संयुक्त महानिदेशक टीएस दरबारी और उप महानिदेशक डॉक्टर संजय महेंद्रू को बलि का बकरा बनाया गया। बताया गया कि इन दोनों का नाम इंग्लैंड की कंपनी से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में भी सामने आये हैं।

भ्रष्टाचार की इस गंगा का वेग नहीं झेल पाने के बाद सरकार के निर्देश पर सीबीआई ने कॉमनवेल्थ गेम्स में सैंदर्यीकरण के नाम पर हुए भ्रष्टाचार के मामले में एमसीडी और एक प्राइवेट फर्म के मैनेजिंग डायरेक्टर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। इसके साथ ही एमसीडी के अधिकारियों पर अपने पदों का गलत इस्तेमाल करने के भी आरोप लगाए गए हैं।

असल में किसी भी देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के किसी भी आयोजन का मेजबान बनना कई मायनों में महत्त्वपूर्ण और बहुत हद तक आर्थिक रूप से फायदेमंद भी साबित होता है।

इसी लिए हमारे प्रधानमंत्री डा .मनमोहन सिंह ने 64वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन को देश की प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए सभी देशवासियों से अपील की थी कि वे इसे राष्ट्रीय त्योहार की तरह समझें, और इसे कामयाब बनाने में सहयोग करें।

साल 2003 में भारत को इन खेलों के आयोजन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में शायद ही कोई पहलू हो जिसकी समय सीमा को लेकर विवाद न उठा हो। यहां तक की खेलों के थीम सॉन्ग को जारी करने को लेकर भी यह दुविधा दिखी थी।

स्थिती यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र की लगभग सभी बड़ी कंपनियां अपने वायदे के बावजूद इससे पीछे हट रही हैं। चाहे वो भारतीय रेल, सेंट्रल बैंक, एयर इंडिया, एनटीपीसी या निजी क्षेत्र की कंपनियां गोदरेज या हीरो होंडा ही क्यों न हो। सभी ने अब आयोजन समिति के सामने प्रायोजन से जुडी शर्तें लगानी शुरू कर दी हैं। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने तो पहले से वादा किया हुआ 100 करोड़ रुपया भी देने से मना कर दिया है।

मेरे मानना है कि देश की प्रतिष्ठा से खिलवाड करने वाले इन महान शख्सियतों पर देशद्रोह का मुकद्दमा चलाया जाना चाहिए। लेकिन मुझे पता है कि इन लोगों का कुछ नहीं होगा और इनकी अगली चार नस्लें भी भ्रष्टाचार से कमाए पैसों का आनन्द लेती रहेंगी।

1 comment:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

कुछ लोग तो चाहेंगे कि हर साल हो..