Saturday, September 25, 2010

पाकिस्तान का शब्दों का खेल


प्रदीप उपाध्याय

जम्मू-कश्मीर को मुद्दा बनाकर भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाब बनाने की नाकाम कोशिश के बाद पाकिस्तान कूटनीति का सहारा लेता नजर आ रहा है। अब वह सीधे तौर पर भारत को निशाना बनाने की बजाए उसके साथ शब्दों का खेल खेलने की कोशिशें कर रहा है। इसके तहत वह खुद उसके द्वारा पैदा किए गए कश्मीर के हिंसक माहौल को भी दक्षिण-एशिया के लिए एक नासूर बता रहा है।

इस रणनीति के जरिए वह कश्मीर को एक जटिल समस्या साबित करना चाहता है, ताकि वह भारत की सरज़मी को अपना नापाक मंसूबों के लिए इस्तेमाल कर सके।

इससे पहले पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह मेहमूद कुरैशी ने अमेरिका से कश्मीर मसले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी। जिसे भारत ने सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह देश का अंदरूनी मामला है, जिसमें किसी को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।

दरअसल, कश्मीर में अपनी पैठ बनाने के लिए अपनी दाल न गलती देख पाकिस्तान अब अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र संघ को एक मौहरे के तौर पर इस्तेमाल करना चाहता है।

यदि एशिया सोसाइटी में शुक्रवार को दिए कुरैशी के बयान पर गौर से ध्यान दे तो हमें ज्ञात होगा कि वह कितना धूर्त है। करैशी ने कहा था, ‘मुझे पता है कि भारत को तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं है। हस्तक्षेप का मतलब शर्तें तय करना नहीं होता।उन्होंने कहा, ‘अमेरिका मार्ग प्रशस्त करने वाली भूमिका निभा सकता है। लेकिन अंतत: यह हमें तय करना है कि कश्मीरी क्या चाहते हैं।

इस बयान के शब्दों को देखे तो इनसे ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के तेवरों में नरमी आयी है। लेकिन जब हम इन शब्दों के अर्थ को समझने की कोशिश करेंगे तो हमें पता चलेगा कि वह किस तरह से कश्मीर में अपनी भूमिका तय करने की कोशिश कर रहा है।

कुरैशी के इस बयान से एक दिन पहले पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि कश्मीर विवाद का तब तक हल नहीं हो सकता जब तक भारत उसे अपना अटूट हिस्सा मानना बंद न कर दे। इससे आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के कश्मीर के साथ हमदर्दी में क्या चाल छिपी हुई है।

इसका जबाब देते हुए भारतीय विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने गुरूवार को कहा कि भारत को किसी भी प्रकार की सलाह या सुझाव देने से पहले पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों से अपने अवैध कब्जे को हटाना चाहिए।

कृष्णा ने कहा कि भारत में लोकतंत्रिक सरकार है, जो देश के संविधान के अनुसार किसी भी समस्या को हल करने में समर्थ है। ऐसे में अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत पाकिस्तान को पहले अपने देश की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए उनका समाधान ढूँढना चाहिए।

इन दिनों न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की वार्षिक बैठक चल रही है और पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को भुनाने की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है।

इस विवाद की जड़ हमारे महान नेताओं की देन है। जिन्होंने अपने निजी हितों और संबंधों की खातिर एक ऐसे विवाद को जन्म दिया, जिसमें न जाने कितने मासूमों को अपनी जान गवानी पड़ी है।

दरअसल, 1947 में विभाजन के बाद जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने भारत या पाकिस्तान में शामिल होने की बजाए अपनी रियासत को आजाद रखने का फैसला लिया।

लेकिन राज्य के कुछ मुस्लिम नेताओं ने पाकिस्तान के सिथ हाथ मिला कर जम्मू-कश्मीर को इसमें विलय करने की योजना बनाई, जिसके तहत पाकिस्तान ने अक्टूबर की शुरूआत में जरूरी चीजों की सप्लाई रोक दी और 22 अक्टूबर को पाकिस्तानी सेना और कबायलियों ने कश्मीर पर हमला कर दिया। इस स्थिति में राजा हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय कर मदद मांगी।

इस तरह जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हो गया और हमारी सेना ने कबायलियों और पाकिस्तानी सेना को राजौरी, पुंछ और कारगिल के पीछे तक धकेल दिया। लेकिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करते हुए कैबिनेट के विरोध के बावजूद इसे मुद्दा बनाकर संयुक्त राष्ट्र में ले गए।

जहां 13 अगस्त 1948 को संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव पारित कर जम्मू-कश्मीर के लोगों को आत्मनिर्णय का हक दिया, जिसे 5 जनवरी 1949 को एक प्रस्ताव के तहत इसे भारत या पाकिस्तान में विलय के हक में बदल दिया गया।

इस प्रस्ताव में जनमतसंग्रह के लिए जम्मू-कश्मीर में मौजूद पाक सेना व कबायलियों की वापसी अहम शर्त थी। लेकिन पाकिस्तान ने फौज हटाने की शर्त आज तक पूरी नहीं की है

ऐसी बात नहीं है कि हमें इस विवाद को हल करने के मौके नहीं मिले हैं।

1. 1947 में कश्मीर को बचाने के लिए पाकिस्तानी सेना व कबायलियों और भारतीय सेना के बीच 31 दिसंबर 1948 की रात 11:59 बजे तक युद्ध चला। प्रारम्भ में पाकिस्तान की सेना ने कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। लेकिन नवंबर मध्य तक हमारी सेना सभी सेक्टरों पर हावी हो गई। सालभर के घेराव के बाद पुंछ छुड़ा लिया गया। गिलगित फोर्सेस को मात देकर कारगिल को भी छुड़ा लिया गयाहमारी सेना ने जोजिला में तो 1200 फीट की ऊंचाई पर टैंक ले जाकर नामुमकिन को भी मुमकिन कर दिखाया। इस युद्ध में पाकिस्तान की सेना भाग खड़ी हुई। यह युद्ध कुछ दिन और चलता तो पूरा कश्मीर हमारे पास होता। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तब तक इसे मुद्दा बनाकर संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की गुहार लगा दी।

2. इसके बाद 1971 में बांग्लादेश आजाद कराने के दौरान हमारी सेना ने पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों को बंदी बना लिया था। लेकिन सद्भावना के चक्कर में हमने बगैर कुछ हासिल किए शिमला समझौते के तहत कब्जे में आ पश्चिमी इलाकोंपाकिस्तान सैनिक को लौटा दिया। यदि हम चाहते तो इसके बदले पाकिस्तान को कश्मीर से हटने के लिए मजबूर कर सकते थे।

हमारे पास जम्मू-कश्मीर का लगभग 101400 वर्ग किमी भू-भाग और 22 जिलें आते है। वहीं पाकिस्तान ने 78114 वर्ग किमी भू-भाग में से 37250 वर्ग किमी को चीन को सौंप दिया।

कश्मीर में अलगाववादी नेताओं की बात की जाए तो सबसे पहले हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरवादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का नाम आता है ये जनाब रहते तो भारत में लेकिन वफादारी पाकिस्तान की करते हैं। ये राज्य को पाकिस्तान में विलय के लिए संघर्षरत हैं। जबकि हुर्रियत अध्यक्ष व उदारवादी नेता मीरवाइज उमर फारूख इसे अलग राष्ट्र बनाने की मांग करते हैं।

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